भारत में जानवरों के लिए हरी घास

रोजमर्रा के जानवरों के लिए हरी घास की जरूरत होती है, ऐसे में किसान को घास की जरूरत होती है जो सभी मौसमों में उग सके और उच्च प्रोटीन और अन्य खनिज प्रदान कर सके।

भारत में कुछ फसलें उपलब्ध हैं, कुछ पारंपरिक या कुछ संकर (केवल घास के लिए)।

बाजरा:- इस फसल का उपयोग मानव और पशु दोनों के उपभोग के लिए किया जाता है। जानवर बीज और पौधे को ग्रहण कर सकता है।

बाजरा के पौधा
बाजरा के पौधा
बाजरे की कुछ किस्में उपलब्ध हैं जो 12 से 14 महीने तक बढ़ सकती हैं। इसे 14 से 32° के बीच और हर शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उगाया जा सकता है। इसे कम उर्वरक और देखभाल की आवश्यकता होती है।इसे वहां भी उगाया जाता है जहां वर्षा 500-900 mm के बीच होती है। इसे भारी पानी की आवश्यकता जो 50-60 cm की मध्यम वर्षा में अच्छी तरह से बढ़ती है। सबसे अच्छी मिट्टी जलोढ़, दोमट और रेतीली मिट्टी हैं।

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बाजरे को 20-25 cm पंक्ति से पंक्ति, 8-10 cm पौधे-से-पौधे से लगाया जाता है जिसमे 2 से 3.5 kg/एकड़ उपयोग किया जाता है।  

बाजरा एक छोटी अवधि (कटाई) की फसल होने के कारण अन्य अनाजों की तुलना में अपेक्षाकृत कम मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। Nitrogen की आधी मात्रा और फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई के समय मूल खुराक(basal dose) के रूप में डालें।

परिणाम:- किसान 1 एकड़ की फसल 11 से 18 पशुओं को पाल सकता है, पहली कटाई 45 दिनों मे और फिर 30 से 45 दिनों मे लगातार 6 से 7 कटाई कर सकते हो।

ज्वार:- यह मक्के फसल का एक विकल्प है जिसे मक्का की अनुपलब्धता के कारण पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह मक्का की तुलना में अधिक सूखा प्रतिरोधी है। इसमें उच्च उत्पादकता और उच्च तापमान के प्रति सहनशीलता है। जिससे इसे उगाने के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है।

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इसमें आमतौर पर बहुत कम कैल्शियम, उच्च फाइटेट फास्फोरस, कोई विटामिन B 12 और बहुत कम विटामिन A गतिविधि होती है।

ज्वार का पौधा 
ज्वार का पौधा
इसे अच्छी जल निकासी वाली, हल्की से मध्यम मिट्टी उपयुक्त होती है। ज्वार का सितंबर/अक्टूबर सितंबर के मध्य के आसपास रोपण के लिए आदर्श समय है। यदि मिट्टी में नमी उपलब्ध हो तो रोपण को अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक बढ़ाया जा सकता है। बुवाई के तुरंत बाद मिट्टी का संघनन उचित उद्भव और रोपाई की स्थापना में मदद करेगा।

ज्वार को 45 cm पंक्ति से पंक्ति, 15 cm पौधे-से-पौधे से लगाया जाता है जिसमे 2 से 3 kg/एकड़ उपयोग किया जाता है।   

सिंचाई के तहत उर्वरक की मात्रा को 32 kg/एकड़ Nitrogen और 40 kg/एकड़ फास्फोरस तक बढ़ाया जा सकता है। इनको को दो भागों में, 50% बुवाई के समय और 50% शीर्ष खुराक के रूप में बुवाई के 30 दिन बाद डालना चाहिए।

Note:-यदि खड़ी फसल पर Zn की कमी देखी जाती है तो ZnSo4 0.2% (2g/lit) साप्ताहिक अंतराल पर दो या तीन बार स्प्रे करें।

परिणाम:- किसान 1 एकड़ की फसल 11 से 18 पशुओं को पाल सकता है, पहली कटाई 45 दिनों मे और फिर 30 से 45 दिनों मे लगातार 6 से 7 कटाई कर सकते हो।

बरसीम (बर्सी):- यह मुख्य रूप से हरी घास के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी ऊंचाई 1 से 3 फीट और जड़ की लंबाई 2 से इंच होती है। बरसीम पशुओं के लिए बहुत लोकप्रिय चारा है क्योंकि यह बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। इसके अलावा यह लवणीय और क्षारीय मिट्टी में सुधार के साथ-साथ भूमि की उर्वरता को भी बढ़ाता है।

बरसीम की फसल
बरसीम की फसल

बरसीम की अच्छी फसल के लिए सिंचित ,जिसकी मिट्टी भारी दोमट तथा अधिक जलधारण क्षमता वाली हो, और जिसमें जल निकास की अच्छी सुविधा हो खेत का चुनाव करे।

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इसकी बुआई के लिए सबसे उपयुक्त समय सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर के मध्य तक है. देर से बुआई करने पर फसल में एक या दो कटाई कम मिलती है तथा प्रति कटाई चारे के पैदावार में में भी कमी आती है

छिटकाव विधि से बुआई के लिए 11 से 12 kg/एकड़ बीज की आवश्यकता है, सूखे खेत में बुआई के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी तथा मिट्टी भूर-भूरी होना आवश्यक है. इसमें खेत में बीज छिटकर हल्की मिट्टी फेर दें, ध्यान रहे कि बीज 1 से 1.5 cm से अधिक गहराई पर नहीं जाना चाहिए।

बरसीम में Nitrogen की मात्रा की आवश्यकता कम पड़ती है, जिसकी कमी जैविक खाद या Waste Decomposer से पुरी कर सकते है।

पहली कटाई बुआई के 45 से 50 दिन के मध्य ली जा सकती है. अन्य कटाईयाँ 30 से 35 दिन के अन्तराल पर लेने से अच्छी उपज प्राप्त होती है. पौधों में अधिक पुर्नवृद्धि और उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसल को जमीन की सतह से 5 से 7 cm की ऊँचाई पर काटना आवश्यक है., बरसीम की फसल से हरा चारा नवम्बर के अन्त से अप्रैल तक मिलता है। पहली कटाई के दौरान कम उपज मिलती है, परन्तु दूसरी और तीसरी कटाई के समय सबसे अधिक उपज मिलती है. फूल आने के बाद बीज वाली फसल में सिंचाई नहीं करें, मई में लू चलने से परागण व निषेचन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

परिणाम:- प्रति एकड़ औसत से अधिक लगभग 400 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता हैं।

नेपियर घास
नेपियर घास
नेपियर घास:- इसे गन्ना चरी, हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है। डेयरी मे हरी घास की कमी को पूरा करने के लिए यह उचित घास है। पौधे मोटे, बारहमासी और ऊंचाई में 4-7 मीटर तक होते हैं। Elephant grass (हाथी घास) 1 मीटर तक घने घने गुच्छों का निर्माण करती है। इसमें 8-12% कच्चा प्रोटीन और 26-28% कच्चा फाइबर होता है। कुल पचने योग्य पोषक तत्व 55-58% के बीच होते हैं।

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नेपियर घास को अच्छी वृद्धि के लिए गर्म और नम जलवायु, मिट्टी से चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। फसल को उत्तर भारत में फरवरी के अंत से अगस्त के अंत तक बोया जाता है। लेकिन उपज की दृष्टि से अधिकतम प्रतिफल प्राप्त करने के लिए फसल की बुवाई फरवरी के अंत तक करनी चाहिए, क्योंकि देर से बुवाई करने से नवंबर के अंत तक केवल एक ही कट लग सकता है जिसके बाद यह सुप्त अवस्था में रहता है। यह उन जगहों पर अच्छा उत्पादन करता है जहां तापमान 25° से 40° तक और जहां वार्षिक वर्षा 1500 मिमी से अधिक होती है। यह 15° से नीचे तापवान पर बढ़ना बंद कर देता है।
नोट:- नेपियर घास 3 से 5 साल तक एक ही जमीन पर उत्पादन दे सकता है

आम प्रक्रिया बुआई की भारत मे इस प्रकार है
  1. पौधों के बीच 3 फीट की दूरी पर 15-20 सेमी की चौड़ाई और 15-20 सेमी की गहराई खोदें पंक्तियों के बीच 2 फीट दुरी रखे ।
  2. प्रत्येक छेद में एक या दो मुट्ठी खेत की खाद (4 टन/एकड़ गोबर की खाद) डालें ।
  3. दो गांठें वाले बेंत को मिट्टी में तिरछी स्थिति में रखें ।
  4. जड़ के टुकड़ों को रोपण छिद्रों में रखें और मिट्टी से ढक दें।
परिणाम:- पहली कटाई तीन महीने के रोपण के बाद तैयार हो जाती है और उसके बाद हर 50-60 दिनों में तैयार हो जाती है। हरे चारे का उद्देश्य कम से कम भरण पोषण राशन उपलब्ध कराना है। 4 टन//एकड़ उत्पादन भारत मे किया जाता है ।

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